राष्ट्रीय एकता दिवस की शुरुआत भारत सरकार द्वारा सन् 2014 में की गई थी.देशी रियासतों का एकीकरण करके भारत के राजनीतिक एकीकरण का जो मार्ग सरदार बल्लभ भाई पटेल द्वारा प्रशस्त किया गया था ,के योगदान के सम्मान में प्रतिवर्ष सरदार पटेल के जन्मदिवस अर्थात 31 अक्टूबर को ‘राष्ट्रीय एकता दिवस’ के रूप में मनाया जाता है.

सरदार बल्लभ भाई पटेल का संक्षिप्त जीवन परिचय
सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के पेटलाद तालुके के करमसद गांव में हुआ था.उनके पिता का नाम झबेर भाई पटेल तथा माता का नाम लाड़बाई था. झबेर भाई पेशे से किसान थे.
बल्लभ भाई के बचपन की घटना
सरदार पटेल के बचपन की एक घटना हमें यह बतलाती है कि वह कितने साथी थे ,दरअसल बचपन में सरदार पटेल की आंख के पास एक फोड़ा निकल आया था, बहुत दवा की गई पर वह ठीक न हुआ. किसी व्यक्ति ने सलाह दी की यदि लोहे की सलाख को खूब गर्म करके फोड़े में धँसा दिया जाए तो फोड़ा फूट जाएगा. सलाख गर्म की गई किंतु किसी में यह साहस न हुआ कि उस गर्म सलाख को फोड़े में धँसाए. डर यह था कि कहीं आंख में न लग जाए.इस पर बालक बल्लभ ने कहा,”देखते क्या हो सलाख ठंडी हो रही है.” और फिर स्वयं ही गर्म सलाख लेकर थ फोड़े में धँसा दिया.बालक के इस साहस को देखकर उपस्थित लोगों ने कहा कि यह बालक आगे चलकर बहुत ही साहसी होगा.
22 वर्ष की उम्र में सरदार पटेल ने नाडियाद स्कूल से मैट्रिक परीक्षा पास की फिर मुख्तारी परीक्षा पास करके गोधरा में मुख्तारी करने लगे.कुछ समय बाद वल्लभभाई वकालत पढ़ने के लिए विदेश चले गए. जहां वह रहते थे, वहां से पुस्तकालय 11 मील दूर था. वह प्रतिदिन सवेरे उठकर पुस्तकालय में जाते और शाम को पुस्तकालय के बंद होने पर ही वहां से उठते. अपने इसी अध्ययन के फलस्वरूप वह उस साल वकालत की परीक्षा में सर्वप्रथम रहे. इस पर उन्हें 50 पाउंड का पुरस्कार भी मिला.
विदेश से लौटकर वह अहमदाबाद में वकालत करने लगे और थोड़े ही समय में अत्यंत प्रसिद्ध हो गए. इसी समय वह गांधी जी के संपर्क में आए. उन्होंने वकालत छोड़ दी और पूरी तरह तन-मन-धन से देश की सेवा में जुट गए.
सर्वप्रथम वल्लभभाई ने गोधरा में हुए प्रांतीय राजनीतिक सम्मेलन में गुजरात की बेगार प्रथा को समाप्त करने के लिए एक प्रस्ताव पास कराया. इस सम्मेलन में पहली बार भारतीय भाषाओं का प्रयोग किया गया. वल्लभभाई के प्रयासों के फलस्वरूप गैरकानूनी बेगार प्रथा बंद हो गई. बल्लभभाई ने नागपुर के झंडा सत्याग्रह का नेतृत्व भी किया.इस सत्याग्रह के कारण अंग्रेज सरकार को समझौते के लिए झुकना पड़ा.इस सत्याग्रह के बाद वल्लभभाई की कीर्ति संपूर्ण भारत में फैल गई.
सन् 1927 में बारदोली का प्रसिद्ध सत्याग्रह शुरू हुआ. किसानों पर सरकार ने लगान की दर बढ़ा दी. किसान बल्लभभाई के पास गए. इस तरह उनके नेतृत्व में आंदोलन प्रारंभ हो गया. उन्होंने गांव वालों को इस तरह संगठित किया कि लगान मिलना तो दूर गांव में अंग्रेज अफसरों को भोजन,रहने का स्थान और सवारी तक मिलना मुश्किल हो गया.
अंग्रेजी सरकार ने इसके विरोध में बहुत अत्याचार किए. गरीब किसानों के घरों के ताले फौज के जरिए तुड़वाकर, सामान जब्त करके मालगुजारी वसूल करने की कोशिश की गई पर सरकारी खजाने में एक कौड़ी भी जमा न हुई. हजारों लोग जेल गए. उनकी गाय, भैंस तक जब्त कर ली गई पर उन्होंने सिर न झुकाया.यहां तक कि जब्त किए गए सामान को उठाने वाला कोई मजदूर नहीं मिलता था और न जब्त की गई जायदाद की नीलामी में बोली लगाने वाला कोई आदमी. महीनों तक यही हाल रहा,अंत में सरकार को झुकना पड़ा.
सन् 1929 में लाहौर में पूर्ण स्वराज्य की माँग की गई.अंग्रेज सरकार ने इसे नहीं माना. गांधी जी ने फिर से सत्याग्रह का नारा दिया और 12 मार्च को प्रसिद्ध डांडी यात्रा शुरू कर दी. इसके बाद 6 अप्रैल को नमक कानून तोड़कर उन्होंने नमक सत्याग्रह आरंभ किया. सरदार पटेल ने इस सत्याग्रह में भाग लिया. वह गिरफ्तार कर लिए गए और उनको तीन माह की कैद और 500 रु0 जुर्माने की सजा दी गई. सरदार पटेल ने जुर्माना स्वीकार न कर उसके स्थान पर तीन सप्ताह और जेल में ही काटे.
सन् 1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध प्रारंभ हो गया. अंग्रेज सरकार ने अपनी ओर से भारत के इस युद्ध में शामिल होने की घोषणा कर दी। इसका सर्वत्र विरोध हुआ. सरदार पटेल 17 नवम्बर 1940 को व्यक्तिगत सत्याग्रह के दौरान गिरफ्तार हुए, पर स्वास्थ्य खराब होने के कारण नौ महीने बाद रिहा कर दिए गए. ‘भारत छोडो’ आंदोलन के सिलसिले में अगस्त 1942 में वह फिर गिरफ्तार किए गए। अन्य सभी नेताओं के साथ 15 जून 1945 को वह भी छोड़े गए.
15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ. सरदार पटेल ने गृहमंत्री का कार्यभार सँभाला. स्वतंत्रता के बाद देश के सामने कई समस्याएँ आईं. सरदार पटेल ने अपनी सूझबूझ इन सभी पर काबू पा लिया.
जिस कार्य के लिए सरदार पटेल को सदैव याद किया जाएगा, वह था देशी रियासतों का एकीकरण. जब अंग्रेज भारत छोड़कर जाने लगे तो देशी रियासतों को यह आजादी दे गए कि वह चाहें तो आजाद रह सकते हैं, चाहें तो भारत या पाकिस्तान में मिल जाएँ. सरदार पटेल ने इस विकट समस्या को अपनी दृढ़ता और सूझबूझ से हल कर दिखाया और लगभग छह सौ रियासतों को भारतीय संघ का अटूट अंग बनाकर भारत के मानचित्र को नवीन स्वरूप प्रदान किया. संपूर्ण भारत में एकता स्थापित हो गई, इसलिए उन्हें भारत का लौहपुरुष कहा जाता है.
सरदार पटेल की मृत्यु
सरदार पटेल स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् केवल ढाई वर्ष जीवित रहे. वह अंतिम समय तक कठिन परिश्रम करते रहे. 15 दिसम्बर 1950 को दिल के दौरे से मुंबई (बंबई) में उनका निधन हो गया. भारत निर्माण में सरदार वल्लभ भाई के अविस्मरणीय योगदान के कारण वर्ष 1991 में भारत के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न से सम्मानित किया गया.
सरदार पटेल की सफलता का मूल मंत्र था – कर्तव्यपालन और कठोर अनुशासन। अपने पचहत्तरवें जन्म दिवस पर उन्होंने राष्ट्र को संदेश दिया था- “उत्पादन बढ़ाओ, खर्च घटाओ और अपव्यय बिल्कुल न करो.”
राष्ट्रीय एकता दिवस के दिन सरकारी कार्यालयों में ली जाने वाली शपथ
मैं पूरी तरह से प्रतिज्ञा करता हूं कि मैं राष्ट्र की एकता, अखंडता और सुरक्षा को बनाए रखने के लिए खुद को समर्पित करता हूं और अपने साथी देशवासियों के बीच इस संदेश को फैलाने के लिए कड़ी मेहनत करता हूं. मैं इस प्रतिज्ञा को अपने देश की एकता की भावना से लेता हूं, जो सरदार वल्लभभाई पटेल की दृष्टि और कार्यों से संभव हुआ. मैं भी अपने देश की आंतरिक सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए अपना योगदान देने का दृढ़ संकल्प करता हूं.
स्टैच्यू ऑफ यूनिटी

स्टैच्यू ऑफ यूनिटी भारत के प्रथम उप प्रधानमन्त्री तथा प्रथम गृहमन्त्री वल्लभभाई पटेल को समर्पित एक स्मारक है,जो भारतीय राज्य गुजरात में स्थित है. गुजरात के तत्कालीन मुख्यमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने 31 अक्टूबर 2013 को सरदार पटेल के जन्मदिवस के मौके पर इस विशालकाय मूर्ति के निर्माण का शिलान्यास किया था. यह स्मारक सरदार सरोवर बांध से 3.2 किमी की दूरी पर साधू बेट नामक स्थान पर है जो कि नर्मदा नदी पर एक टापू है.यह स्थान भारतीय राज्य गुजरात के भरुच के निकट नर्मदा जिले में स्थित है.
यह विश्व की सबसे ऊँची मूर्ति है, जिसकी लम्बाई 182 मीटर (597 फीट) है. इसके बाद विश्व की दूसरी सबसे ऊँची मूर्ति चीन में स्प्रिंग टैम्पल बुद्ध है, जिसकी आधार के साथ कुल ऊंचाई 153 मीटर (502 फीट) हैं.
प्रारम्भ में इस परियोजना की कुल लागत भारत सरकार द्वारा लगभग 3,000 करोड़ रखी गयी थी बाद लार्सन एंड टूब्रो ने अक्टूबर 2014 में सबसे कम 2,989 करोड़ की बोली लगाई; जिसमें आकृति, निर्माण तथा रखरखाव शामिल था. निर्माण कार्य का प्रारम्भ 31 अक्टूबर 2013 को प्रारम्भ हुआ. मूर्ति का निर्माण कार्य मध्य अक्टूबर 2018 में समाप्त हो गया. इसका उद्घाटन भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 31 अक्टूबर 2018 को सरदार पटेल के जन्मदिवस के मौके पर किया गया.
FAQ
प्रश्न.प्रतिवर्ष 31 अक्टूबर को कौन सा दिवस मनाया जाता है?
उत्तर.राष्ट्रीय एकता दिवस
प्रश्न.राष्ट्रीय एकता दिवस मनाने की शुरुवात कब से हुई थी?
उत्तर.सन् 2014 में
यह भी पढ़ें-
- विद्याज्ञान स्कूल अकादमिक वर्ष 2023-24 प्रारंभिक प्रवेश परीक्षा
- प्रकृति(कक्षा-5) पाठ-17 विश्व में भारत
- NIPUN Bharat Mission | निपुण भारत मिशन (मिशन प्रेरणा फेज-2)
- संचारी रोग नियंत्रण एवं दस्तक अभियान Communicable Disease Control And Dastak Campaign Hindi
- PFMS || PFMS पोर्टल और विद्यालय का SMC खाता
- Aadhaar Seeding Process ||आधार सीडिंग प्रक्रिया || Download Aadhaar Seeding Form
- PM SHRI Yojana|पीएम श्री योजना संक्षिप्त में
- क्रिकेट में इंपैक्ट प्लेयर का नया नियम लाने की तैयारी,IPL में भी जल्द लागू होगा