कक्षा-5 | विषय-हिन्दी | वाटिका | पाठ-1 | विमल इंदु की विशाल किरणें
विमल इंदु की विशाल किरणें,
प्रकाश तेरा बता रही है।
अनादि तेरी अनंत माया
जगत को लीला दिखा रही है।।
प्रसार तेरी दया का कितना
ये देखना हो तो देख सागर।
तेरी प्रशंसा का राग प्यारे
तरंगमालाएं गा रही हैं।।
तुम्हारा स्मित हो जिसे निरखना
वह देख सकता है चंद्रिका को।
तुम्हारे हंसने की धुन में नदियां
निनाद करती ही जा रही हैं।।
जो तेरी होवे दया दयानिधि,
तो पूर्ण होता ही है मनोरथ।
सभी यह कहते पुकार कर के,
यही तो आशा दिला रही हैं।।
–जयशंकर प्रसाद
जयशंकर प्रसाद जी का संक्षिप्त परिचय

जन्म | 30 जनवरी 1889 ई० |
मृत्यु | 15 नवम्बर 1937 ई० |
जन्म स्थान | काशी (उत्तर-प्रदेश) के गोवर्धनसराय में |
पिता का नाम | बाबू देवीप्रसाद साहू |
माता का नाम | श्रीमती मुन्नी देवी |
काव्य | प्रेम-पथिक,झरना,करुणालय,महारणा का महत्व,आँसू,लहर,कामायनी |
नाटक | स्कंदगुप्त,चंद्रगुप्त,ध्रुवस्वामिनी,जन्मेजय का नाग,यज्ञ,राज्यश्री,कामना,एक घूंट |
उपन्यास | तितली,कंकाल,इरावती, आदि। |
कहानियाँ | आंधी,आकाशदीप,चित्र मंदिर,संदेश,इंद्रजाल,प्रतिध्वनि |
प्रसिद्धि का कारण | लेखक, कवि, उपन्यासकार |

शब्द-अर्थ
शब्द | अर्थ |
अनादि | जिसका कोई आरंभ न हो,हमेशा साथ रहने वाला |
अनंत | जिसका अंत न हो |
मनोरथ | मन की कामना,अभिलाषा |
दयानिधि | दया का भंडार,ईश्वर |
चंद्रिका | चाँदनी |
स्मित | मंदहास,मुस्कान |
प्रसार | फैलाव,विस्तार |
निनाद | गुंजार,ध्वनि |
तरंगमालाएँ | लहरों का समूह |
इन्दु | चंद्रमा |
संदर्भ, प्रसंग, भावार्थ
विमल इन्दु………………………….दिखा रही हैं।
संदर्भ-यह पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘वाटिका’ के ‘विमल इन्दु की विशाल किरणें’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता ‘जयशंकर प्रसाद’ हैं।
प्रसंग-इस कविता में कवि ने ईश्वर की महिमा का वर्णन किया है।
भावार्थ-कवि जयशंकर प्रसाद जी ईश्वर की महिमा का बखान करते हुए कहते हैं कि स्वच्छ चंद्रमा की उन्नत किरणें अर्थात् चांदनी ईश्वर के प्रकाश को लक्षित कर रही है। ईश्वर की माया अनादि और अनंत है यह हमेशा रहने वाली है और संपूर्ण संसार को ईश्वर का चमत्कार दिखा रहे हैं।
प्रसार तेरी………………………… गा रही है।
भावार्थ- कवि कहता है की ईश्वर की दया का फैलाव या विस्तार कितना अधिक है यह फैले हुए विस्तृत समुद्र को देखने से पता लगता है।वास्तव में ईश्वर दया के सिंधु हैं। ईश्वर की प्रशंसा का राग सागर की लहरों के गान में गाया जाना सन्निहित है।
तुम्हारा स्मित………………………….रही हैं।।
भावार्थ- जयशंकर प्रसाद जी कहते हैं कि जिसे ईश्वर की मुस्कान देखनी हो वह चंद्रमा की चांदनी को देखें। नदियों की लगातार कल-कल करने की ध्वनियों में ईश्वर के हंसने की ध्वनि प्रतिबिंबित होती है।
जो तेरी………………………….दिला रही हैं।।
भावार्थ- कवि जयशंकर प्रसाद जी कहते हैं की हे, दया के सागर ईश्वर! जिस पर आपकी कृपा दृष्टि हो जाती है उसकी सभी मनोकामनाओं की पूर्ति हो जाती है। प्रकृति के भिन्न-भिन्न रूप जैसे चंद्रमा,समुद्र की लहरों के समूह आदि सभी ईश्वर की महिमा को उच्च स्वरों में वर्णित करके मानव में आशा का संचार कर रहे हैं।
1. बोध प्रश्न: उत्तर लिखिए-
प्रश्न(क): ईश्वर की महिमा प्रकृति के किन-किन रूपों में दिखाई दे रही है? दिए गए उत्तरों को सही क्रम में लिखिए-
ईश्वर का प्रकाश=चांदनी के रूप में
उसकी दया का प्रसार=नदियों के निनाद में
उसकी प्रशंसा के राग=विमल इंदु की विशाल किरणें के रूप में
ईश्वर का मंद हास=सागर की लहरों के गाने में
ईश्वर के हंसने की धुन=सागर के रूप में
उत्तर(क):
- ईश्वर का प्रकाश=विमल इंदु की विशाल किरणें के रूप में
- उसकी दया का प्रसार=सागर के रूप में
- उसकी प्रशंसा के राग=सागर की लहरों के गान में
- ईश्वर का मंद हास=चांदनी के रूप में
- ईश्वर के हॅंसने की धुन=नदियों के निनाद में
प्रश्न(ख): परमात्मा को ‘दयानिधि’ क्यों कहा गया है?
उत्तर(ख): परमात्मा अर्थात् ईश्वर संपूर्ण विश्व में सर्वाधिक दयावान है; इसी कारण से उन्हें ‘दयानिधि’ कह कर संबोधित किया गया है।
प्रश्न(ग): तरंगमालाएं क्या कर रही हैं?
उत्तर(ग): तरंगमालाएं ईश्वर की प्रशंसा का राग गा रही है।
प्रश्न(घ): प्रभु की दया की तुलना सागर से क्यों ही गई है?
उत्तर(घ): जिस तरह सागर का कोई अंत नहीं है, ठीक उसी तरह ईश्वर की दया का भी अंत नहीं है। प्रभु की दया अपरंपार है, इसीलिए ईश्वर की दया की तुलना सागर से की गई है।
2. पंक्तियों के भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) तुम्हारे हॅंसने की धुन में नदियां, निनाद करती ही जा रही हैं।
उत्तर: इन पंक्तियों से कवि का तात्पर्य यह है की ईश्वर की हॅंसी को कल-कल करके बहती हुई नदियों के ध्वनि में सुना जा सकता है अर्थात् नदियों का कल-कल करके बहना ईश्वर की हॅंसी का एक रूप है।
(ख) तेरी प्रशंसा का राग प्यारे, तरंगमालाएं गा रही हैं।
उत्तर: इन पंक्तियों से कवि का आशय है कि समुद्र में उठने वाली विशालकाय तरंगे अर्थात् लहरें ईश्वर की महिमा का गुणगान कर रही हैं।
3. सोच-विचार: बताइए-
प्रश्न(क): प्रकृति द्वारा निर्मित 10 चीजों के नाम।
उत्तर(क): प्रकृति द्वारा निर्मित 10 चीजों के नाम हैं- हिमनद, पर्वत, सागर, सूर्य, जंगल, मरुस्थल, चंद्रमा, तारे, फूल, झरना
प्रश्न(ख): मानव द्वारा निर्मित 20 चीजों के नाम।
उत्तर(ख): पंखा, मकान, हवाईजहाज, घड़ी, रॉकेट, रेलगाड़ी, बस, मोटरसाइकिल, कंप्यूटर, मोबाइल, उपग्रह, हथियार, फर्नीचर, कपड़े, गहने, ट्यूबलाइट, रेडियो, पॉलिथीन, बर्तन, अंतरिक्ष स्टेशन
4.भाषा के रंग-
(क) नीचे लिखे शब्दों के तुकांत शब्द लिखिए- जैसे- सागर: गागर
इंदु : सिंधु
धुन : सुन
माया : खाया
लीला : गीला
मिला : सिला
(ख) नीचे दिए गए शब्दों के समानार्थी शब्द लिखिए- जैसे इंदु : चंद्रमा
प्रकाश : उजाला
सागर : समुंद्र
मनोरथ : अभिलाषा
जगत : संसार
तरंग : लहरें
5. तुम्हारी कलम से-
- सुबह-शाम के दृश्यों को देखकर जो छवि आपके मन में उभरती है उसे अपने शब्दों में लिखिए।
6.अब करने की बारी-
- कविता का अभ्यास कर कक्षा में भावपूर्ण ढंग से सुनाइए।
7. इस कविता को ध्यानपूर्वक पढ़िए-
पथ मेरा आलोकित कर दो।
नवल प्रात की नवल रश्मियों से मेरे उर का तम हर दो।।
मैं नन्हा सा पथिक विश्व के पथ पर चलना सीख रहा हूॅं,
मैं नन्हा सा विहग विश्व के नभ में उड़ना सीख रहा हूॅं।
पहुंच सकूं निर्दिष्ट लक्ष्य तक मुझको ऐसे पग दो, पर दो।।
पाया जग से जितना अब तक और अभी जितना मैं पाऊॅं,
मनोकामना है यह मेरी उससे कहीं अधिक दे जाऊॅं।
धरती को ही स्वर्ग बनाने का मुझको मंगलमय वर दो।।
-द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
प्रश्न. अब, इस कविता पर तीन प्रश्न बनाइए।
उत्तर. कविता पर तीन प्रश्न निम्नलिखित हैं-
१.कविता में कवि किससे पथ आलोकित करने का आग्रह कर रहा है?
२.कवि ने स्वयं को नन्हा सा पथिक क्यों कहा है?
३.कवि क्या-क्या वरदान मांग रहा है?
प्रश्न. कविता को मनचाहा शीर्षक दीजिए।
उत्तर. पथ मेरा आलोकित कर दो
प्रश्न. कविता पर चित्र बनाइए।
FAQ
प्रश्न. जयशंकर प्रसाद का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर. जयशंकर प्रसाद का जन्म 30 जनवरी 1889 ई० को काशी के गोवर्धनसराय में में हुआ था l
प्रश्न. जयशंकर प्रसाद के पिता का क्या नाम था?
उत्तर. जयशंकर प्रसाद के पिता का नाम बाबू देवीप्रसाद साहू था l
प्रश्न. जयशंकर प्रसाद की मृत्यु कब हुई थी?
उत्तर. जयशंकर प्रसाद की मृत्यु 15 नवम्बर 1937 ई० को हुई थी l
Very good presentation
शानदार प्रस्तुतिकरण👌👌👌
Shandar