भारतीय संविधान का विकास:1773 से 1947 तक के चरण

भारतीय संविधान का विकास: कोई भी लोकतांत्रिक राजव्यवस्था या कोई भी लोकतांत्रिक देश बिना नियमों कानूनों के शासित नहीं होते। हर देश का शासन संचालन नियमों और कानूनों के आधार पर  होता है, जो वहां के संविधान द्वारा, वहां की विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका द्वारा निर्धारित किए जाते हैं।

भारत  लंबे समय तक ब्रिटिश शासन का गुलाम था। आजादी के बाद भारत के शासन  संचालन हेतु भी कुछ नियमों और विधानों की आवश्यकता थी। इसलिए भारतीय संविधान  निर्माताओं द्वारा देश के शासन संचालन हेतु एक विस्तृत संविधान का निर्माण किया गया।

यद्यपि ब्रिटिश काल में भी ब्रिटिश शासन द्वारा समय-समय पर अनेक नियम और अधिनियम लाए जाते रहे जिसके आधार पर ब्रिटिश काल में देश की शासन व्यवस्था का संचालन होता था। इन नियमों और अधिनियम ने भी भारत के संवैधानिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।

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Table of Contents

भारतीय संविधान का विकास: एक नज़र में

क्र.सं.सनअधिनियम/एक्ट
1.1773रेगुलेटिंग एक्ट
2.1781एक्ट ऑफ सेटलमेंट
3.1784पिट्स इंडिया एक्ट
4.1813चार्टर अधिनियम
5.1833चार्टर अधिनियम
6.1853चार्टर अधिनियम
7.1858भारत शासन अधिनियम
8.1861भारतीय परिषद अधिनियम
9.1892भारतीय परिषद अधिनियम
10.1909मार्ले-मिंटो सुधार
11.1919मोंटेग्यू- चेम्सफोर्ड सुधार
12.1935भारत शासन अधिनियम
13.1942क्रिप्स मिशन
14.1946कैबिनेट मिशन
15.1947भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम
भारतीय संविधान के विकास के चरण

भारत के संवैधानिक विकास को दो चरणों में बांटा जा सकता है

पहला: ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन अधिनियमों द्वारा (1773 -1857)

दूसरा: ब्रिटिश ताज/ सम्राट के अधीन पारित अधिनियमों द्वारा (1858-1947)

ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन पारित अधिनियम:

1.रेगुलेटिंग एक्ट 1773 (Regulating Act 1773)

  • इस एक्ट के आने के पूर्व ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की गतिविधियों पर ब्रिटिश सरकार का नियंत्रण अपेक्षाकृत कम था। इसके द्वारा पहली बार ईस्ट इंडिया कंपनी के कार्यों को नियमित और नियंत्रित करने का प्रयास किया गया। इसके द्वारा कंपनी के प्रशासन पर  ब्रिटिश संसदीय  नियंत्रण की शुरुआत हुई।
  • भारत में कंपनी के शासन हेतु पहली बार एक लिखित संविधान प्रस्तुत किया गया।
  • इस एक्ट के द्वारा बंगाल के गवर्नर को बंगाल का गवर्नर-जनरल कहा जाने लगा। गवर्नर जनरल की सहायता के लिए 4 सदस्यीय  कार्यकारी परिषद का गठन किया गया। बंबई तथा मद्रास प्रेसिडेंसी को भी कलकत्ता प्रेसिडेंसी के अधीन कर दिया गया।
  • रेगुलेटिंग एक्ट के तहत  लॉर्ड वारेन हेस्टिंग्स बंगाल के प्रथम गवर्नर जनरल बने।
  • इस एक्ट के तहत 1774 में कलकत्ता में एक सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गई जिसके मुख्य न्यायाधीश सर एलिजा इम्पे तथा अन्य न्यायाधीश चैंबर्स, लीमेस्टर तथा हाइड थे।
  • इस एक्ट के द्वारा कंपनी के कर्मचारियों को निजी व्यापार करने और भारतीय लोगों से उपहार तथा रिश्वत लेने से प्रतिबंधित कर दिया गया।

2.एक्ट ऑफ सेटलमेंट 1781 (Act of Settlement, 1781)

  • रेगुलेटिंग एक्ट 1773 की कमियों को दूर करने के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा कंपनी के शासन हेतु एक नया अधिनियम पारित किया गया इसे एक्ट ऑफ सेटलमेंट कहा जाता है।
  • इस एक्ट के तहत कलकत्ता की सरकार को बंगाल, बिहार और उड़ीसा तीनों के लिए विधि बनाने का अधिकार प्रदान किया गया।
  • इस एक्ट में सपरिषद गवर्नर जनरल तथा सर्वोच्च न्यायालय के आपसी संबंधों को सीमांकित किया गया। इस एक्ट में गवर्नर जनरल तथा उसकी परिषद को  अपने पद से संबंधित कृत्यों के लिए सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार से बाहर कर दिया। इस कानून में राजस्व संबंधी मामलों तथा राजस्व वसूली से जुड़े मामलों को भी सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार से बाहर कर दिया।

3.पिट्स इंडिया एक्ट 1784 (Pitt’s India Act, 1784)

  • यह एक्ट ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री विलियम पिट द्वारा प्रस्तुत किया गया इसलिए इसी  ‘पिट्स इंडिया एक्ट’ के नाम से जाना जाता है।
  • इस एक्ट के द्वारा द्वैध शासन व्यवस्था की शुरुआत हुई, जिसके तहत कंपनी के राजनीतिक और वाणिज्यिक  कार्यों को अलग-अलग कर दिया गया। कंपनी के व्यापारिक मामलों के अधीक्षण की शक्ति ‘निदेशक मंडल’ (Court of Directors) को दी गई तथा साथ ही राजनीतिक मामलों के प्रबंधन के लिए एक नए निकाय ‘नियंत्रण बोर्ड’ (Board of Control) का गठन किया गया।
  • इस एक्ट के द्वारा कंपनी के अधीन क्षेत्रों को पहली बार ब्रिटिश आधिपत्य का क्षेत्र कहा गया और ब्रिटिश सरकार को भारत में कंपनी के कार्य और प्रशासन पर पूर्ण नियंत्रण प्रदान किया गया।
  • गवर्नर जनरल की परिषद की सदस्य संख्या को 4 से घटाकर 3 कर दिया गया।

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4.चार्टर अधिनियम 1813 (Charter Act, 1813)

  • इस एक्ट के द्वारा कंपनी के व्यापारिक एकाधिकार को समाप्त कर दिया गया। इस एक्ट से पहले ब्रिटेन का भारत के साथ सारा व्यापार ईस्ट इंडिया कंपनी के माध्यम से ही होता था। ब्रिटिश नागरिकों तथा ब्रिटिश व्यापारियों को भारत के साथ व्यापार का अधिकार नहीं था। लेकिन इस एक्ट के द्वारा आम ब्रिटिश नागरिकों और व्यापारियों को भी भारत के साथ व्यापार का अधिकार प्राप्त हो गया, लेकिन चाय और चीन के साथ व्यापार पर अभी भी  कंपनी का एकाधिकार बना रहा।
  • भारत में  शिक्षा के विकास के लिए प्रतिवर्ष 1लाख रुपए  खर्च करने का प्रावधान किया गया।
  • ईसाई मिशनरियों को भारत में धर्म प्रचार की अनुमति प्रदान की गई।

5.चार्टर नियम 1833 (Charter Act, 1833)

  • इस एक्ट के द्वारा कंपनी के व्यापारिक एकाधिकार को पूरी तरह से समाप्त कर दिया गया अर्थात चाय और चीन के साथ व्यापारिक एकाधिकार को भी कंपनी के हाथों से छीन लिया गया।
  • बंगाल के गवर्नर जनरल को अब भारत का गवर्नर जनरल कहा जाने लगा। लॉर्ड विलियम बेंटिक भारत के प्रथम गवर्नर जनरल बने।
  • इस अधिनियम द्वारा पहली बार एक ऐसी सरकार का निर्माण किया जिसका ब्रिटिश कब्जे वाले भारत पर पूर्ण नियंत्रण था और सभी नागरिक तथा सैन्य शक्तियां शक्तियां गवर्नर-जनरल को प्रदान की गई। सपरिषद गवर्नर जनरल को पूरे भारत के लिए कानून बनाने का अधिकार प्रदान किया गया।
  • गवर्नर जनरल को पूरे भारत के लिए एक ही बजट तैयार करने का अधिकार दिया गया।
  •  गवर्नर जनरल की कार्यकारी परिषद में विधि सदस्य के रूप में चौथे सदस्य को सम्मिलित किया गया।
  • इस एक्ट के तहत लॉर्ड मैकाले की अध्यक्षता में 1934 में प्रथम विधि आयोग का गठन किया गया।
  • इस एक्ट के तहत दास प्रथा को विधि विरुद्ध घोषित कर दिया गया और अंततः 1843 में उसका उन्मूलन कर दिया गया।
  • इस एक्ट के तहत सिविल सेवकों की भर्ती के लिए खुली प्रतियोगिता परीक्षा आयोजित करने का प्रयास किया गया लेकिन कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स के विरोध के कारण इसे लागू नहीं किया जा सका।

6.चार्टर अधिनियम 1853 (Charter Act, 1853)

  • इस एक्ट के द्वारा पहली बार गवर्नर जनरल की परिषद के विधायी और प्रशासनिक कार्यों को अलग कर दिया गया। इसके तहत परिषद  में 6 नए पार्षद और जोड़े गए इन्हें विधान पार्षद कहा गया। इस तरह विधान परिषद में कुल सदस्यों की संख्या बढ़कर 12 हो गई।
  • विधि सदस्य को गवर्नर जनरल की परिषद का पूर्ण सदस्य बना दिया गया।
  • इस एक्ट द्वारा सिविल सेवकों की भर्ती एवं चयन हेतु खुली प्रतियोगिता परीक्षा का प्रारंभ किया गया और पहली बार सिविल सेवा में भारतीयों को शामिल करने का प्रावधान किया गया।

ब्रिटिश ताज/सम्राट के अधीन पारित अधिनियम

1.भारत शासन अधिनियम,1858 (Government of India Act,1858)

  • 1857 में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ पूरे भारत में व्यापक विद्रोह हुआ, जिसे भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कहा गया। इस क्रांति के बाद ब्रिटिश सरकार को यह लगने लगा कि अगर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की यही नीति रही तो वह दिन दूर नहीं जब इस तरह का  क्रांतिकारी आंदोलन फिर उनके खिलाफ खड़ा उठ खड़ा होगा और उन्हे भारत छोड़ने को विवश होना पड़ेगा। इसलिए ब्रिटिश सरकार ने दूरगामी सोच के आधार पर एक नया अधिनियम पारित किया।
  • इस अधिनियम को भारत के शासन को अच्छा बनाने वाले अधिनियम कहा जाता है।
  • इस अधिनियम ने ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों से भारत का शासन छीन कर उसे प्रत्यक्ष रूप से ब्रिटिश ताज/सम्राट के अधीन कर दिया। यह कार्य महारानी विक्टोरिया की 1 नवंबर, 1858 की उद्घोषणा द्वारा किया गया।
  • ‘कोर्ट आफ डायरेक्टर्स’ तथा ‘बोर्ड ऑफ कंट्रोल’ को समाप्त कर उसके अधिकार ब्रिटिश मंत्रिमंडल के एक सदस्य को सौंपा गया जिसे भारत राज्य सचिव (Secretary of State for India) का पदनाम प्रदान किया गया और उसकी सहायता के लिए 15 सदस्य भारतीय परिषद का गठन किया गया। भारत का राज्य सचिव अपने कार्यों के लिए ब्रिटिश संसद के प्रति उत्तरदायी होता था।
  • भारतीय मामलों पर ब्रिटिश संसद का सीधा नियंत्रण स्थापित हो गया और मुगल सम्राट के पद को समाप्त कर दिया गया।
  • गवर्नर जनरल का पद नाम बदलकर भारत का वायसराय कर दिया गया। वायसराय भारत में ब्रिटिश ताज का प्रत्यक्ष प्रतिनिधि बन गया। लॉर्ड कैनिंग भारत के प्रथम वायसराय बने।

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2. भारतीय परिषद अधिनियम, 1861(Indian Council Act,1861)

  • इस अधिनियम द्वारा सर्वप्रथम भारतीयों को शासन में भागीदार बनाने का प्रयास किया गया, क्योंकि 1857 की क्रांति के बाद ब्रिटिश सरकार ने महसूस किया कि भारत में शासन चलाने के लिए भारतीयों का सहयोग लेना  अतिआवश्यक है।
  • इसके द्वारा कानून बनाने की प्रक्रिया में भारतीय प्रतिनिधियों को शामिल करने की शुरुआत हुई। 1862  तीन भारतीयों बनारस के राजा, पटियाला के राजा और सर दिनकर राव को विधान परिषद में मनोनीत किया।
  • वायसराय को आपात स्थिति में अध्यादेश जारी करने का अधिकार दिया गया। ऐसे अध्यादेश की अवधि 6 माह होती थी।
  • मंत्रिमंडलीय/ विभागीय/पोर्टफोलियो  प्रणाली की शुरुआत हुई।
  • गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी परिषद के सदस्यों की संख्या 4 से बढ़ाकर 5 थी कर दी गई। पांचवें सदस्य का विधिवेत्ता होना अनिवार्य था।
  • इस अधिनियम के द्वारा मद्रास और बंबई प्रेसिडेंसियों की विधायी शक्तियां पुनः वापस दे दी गई। इस प्रकार रेगुलेटिंग एक्ट,1773 द्वारा शुरू की कई केंद्रीयकरण की प्रवृत्ति  जो 1833 के अधिनियम के साथ अपने चरम पर पहुंच गई थी,को समाप्त करके विकेन्द्रीयकरण की शुरुआत की गई।

3. भारतीय परिषद अधिनियम,1892 (Indian Council Act,1892

  • पहली बार निर्वाचन पद्धति का प्रारंभ किया गया। यद्यपि यह निर्वाचन अप्रत्यक्ष और सीमित  था। यद्यपि ‘निर्वाचन’ शब्द का प्रयोग नहीं किया गया था।
  • परिषद के भारतीय सदस्यों को बजट पर बहस करने और प्रश्न पूछने का अधिकार दिया गया किंतु बजट पर मतदान करने और पूरक प्रश्न पूछने का अधिकार नहीं था।

4. भारतीय परिषद अधिनियम (मार्ले-मिंटो सुधार),1909 (Indian Council Act,1909)

  • जब यह अधिनियम भारत में आया उस समय लॉर्ड मार्ले भारत राज्य सचिव तथा लॉर्ड मिंटो वायसराय थे। इसलिए इस अधिनियम को मार्ले- मिंटो सुधार भी कहा जाता है।
  • इस अधिनियम द्वारा विधान परिषद के भारतीय सदस्यों को बजट पर मतदान करने तथा पूरक प्रश्न पूछने का अधिकार प्रदान किया गया।
  • पहली बार वायसराय की कार्यकारिणी परिषद में किसी भारतीय सदस्य को नियुक्त किया गया। वायसराय की कार्यकारिणी परिषद में नियुक्त होने वाले प्रथम भारतीय सदस्य सत्येंद्र प्रसाद सिन्हा थे जिन्हें विधि सदस्य के रुप में सम्मिलित किया गया।
  • इस अधिनियम द्वारा सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व की शुरुआत हुई। मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचन मंडल की व्यवस्था कर भारत में ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति का सूत्रपात किया गया। इसीलिए लॉर्ड मिंटो को सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व का जनक कहा जाता है।

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5. भारत शासन अधिनियम,1919 (मोंटेग्यू- चेम्सफोर्ड सुधार) (Government of India Act,1919)

  •  इस समय लॉर्ड मांटेग्यू भारत राज्य सचिव तथा लॉर्ड चेम्सफोर्ड वायसराय थे जिनके आधार पर इस अधिनियम को मोंटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार भी कहा जाता है। 20 अगस्त, 1917 को ब्रिटिश सरकार द्वारा एक घोषणा जारी की गई जिसे मांटेग्यू घोषणा कहा जाता है। इस घोषणा में कहा गया की ब्रिटिश सरकार का उद्देश्य भारत में क्रमिक रूप से उत्तरदायी सरकार की स्थापना करना है। इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु  ब्रिटिश सरकार द्वारा 1919 में भारत शासन अधिनियम लाया गया।
  • इस अधिनियम द्वारा केंद्र में द्विसदनीय विधान मंडल की स्थापना की गई l प्रथम सदन को राज्य परिषद तथा दूसरे सदन को केंद्रीय विधानसभा कहा गया।
  • इस अधिनियम द्वारा प्रत्यक्ष निर्वाचन व्यवस्था की शुरुआत की गई।
  • इस अधिनियम द्वारा प्रांतों में द्वैध शासन की शुरुआत की गई। विधि निर्माण के विषयों को पहले दो भागों में बांटा गया केंद्रीय और प्रांतीय। केंद्रीय और प्रांतीय विधान परिषदों को अपने-अपने विषयों पर कानून बनाने का अधिकार प्रदान किया गया। पुनः प्रांतीय विषयों को दो भागों में बांटा गया आरक्षित और हस्तांतरित। आरक्षित विषयों का संचालन गवर्नर अपनी कार्यकारी परिषद के सहयोग से करता था जबकि हस्तांतरित विषयों का संचालन गवर्नर विधान परिषद के प्रति उत्तरदायी मंत्रियों की सहायता से करता था।
  • केंद्रीय विधान मंडल को केंद्रीय सूची में उल्लिखित विषयों के संबंध में विधि निर्माण का अधिकार प्राप्त था परंतु अंतिम निर्णय लेने का अधिकार गवर्नर जनरल को प्राप्त था। इसी प्रकार प्रांतीय विधान मंडलों को भी प्रांतीय विषयो के संबंध बनाने का अधिकार प्राप्त था परंतु यह अधिकार गवर्नर के अधीन था।
  • सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व का विस्तार करते हुए इसे सिख, ईसाई, आंग्ल भारतीय तथा यूरोपीय पर भी लागू किया गया।
  • केंद्रीय बजट को राज्यों के बजट से अलग कर दिया गया। राज्य विधान सभाओं को भी अपना बजट बनाने का अधिकार प्रदान किया गया।
  • सिविल सेवकों की भर्ती के लिए 1926 में एक केंद्रीय लोकसेवा आयोग का गठन किया गया।
  • इस अधिनियम द्वारा पहली बार भारत में महिलाओं को मत देने का अधिकार प्रदान किया गया।
  • इस एक्ट में व्यवस्था थी कि 10 वर्ष बाद एक वैधानिक आयोग की नियुक्ति की जाएगी जो यह जांच करेगा कि यह अधिनियम अपने उद्देश्यों में कहां तक सफल रहा।

6. भारत शासन अधिनियम,1935 (Government of India Act,1935)

  • 1919 के अधिनियम में यह प्रावधान किया गया था कि इस अधिनियम के 10 वर्ष बाद इसकी समीक्षा हेतु एक आयोग का गठन किया जाएगा जो यह जांच करेगा कि अधिनियम अपने उद्देश्य में कहां तक सफल हुआ। किंतु 10 वर्ष  पूरा होने के पहले ही 1927 में ब्रिटिश सरकार द्वारा एक 7 सदस्यीय वैधानिक  आयोग नियुक्त किया गया जिसके अध्यक्ष सर जॉन  साइमन थे। इसी लिए इस आयोग को साइमन आयोग कहा जाता था। यह आयोग 1928 में भारत पहुंचा। आयोग की सिफारिशों के आधार पर लंदन में 1930- 32 के बीच तीन  गोलमेज सम्मेलन हुए, जिसकी संस्तुतियों के आधार पर भारत शासन अधिनियम 1935 पारित किया गया।
  • इस अधिनियम में ब्रिटिश प्रांतों और देसी रियासतों को मिलाकर अखिल भारतीय संघ का प्रावधान किया गया। किंतु यह संघ कभी अस्तित्व में नहीं आ सका क्योंकि देसी रियासतों ने इसमें शामिल होने से इंकार कर दिया था। 
  • इस अधिनियम द्वारा केंद्र और प्रांतों के बीच शक्तियों का बंटवारा तीन सूचियों  में किया गया संघ सूची,राज्य सूची और समवर्ती सूची। अवशिष्ट शक्तियां वायसराय को प्रदान की गई।
  • प्रांतों में द्वैध शासन को समाप्त करके केंद्र में द्वैध शासन की स्थापना का प्रावधान किया गया। अर्थात केंद्रीय सूची के विषयों को आरक्षित और हस्तांतरित विषय में बांटना। आरक्षित विषयों का प्रशासन गवर्नर जनरल अपनी परिषद की सहायता से करता था तथा अपने कार्यों के लिए भारत सचिव के माध्यम से ब्रिटिश सरकार के प्रति उत्तरदायी था हस्तांतरित विषयों का प्रशासन गवर्नर जनरल अपनी मंत्रिपरिषद की सहायता से करता था जो विधानसभा के प्रति उत्तरदायी थी। यद्यपि यह प्रावधान कभी लागू नहीं हो सका।
  • प्रांतीय स्वायत्तता का सिद्धांत। प्रांतीय विषयों पर विधि बनाने का अत्यंतिक अधिकार प्रांतों को दिया था और उस पर से केंद्र का नियंत्रण समाप्त कर दिया गया।
  • भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना।
  • 1937 में संघीय न्यायालय की स्थापना।
  • इस अधिनियम द्वारा संघ लोक सेवा आयोग के साथ-साथ प्रांतीय लोक सेवा आयोग और दो या दो से अधिक राज्यों के लिए संयुक्त लोक सेवा आयोग की स्थापना का प्रावधान किया गया।

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7.क्रिप्स मिशन 1942 (Cripps Mission, 1942)

1939 में द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हुआ। ब्रिटेन को युद्ध में भारत का सहयोग चाहिए था। अतः तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने युद्ध मंत्रिमंडल के सदस्य सर स्टैफर्ड क्रिप्स के नेतृत्व में भारतीय नेताओं से वार्ता हेतु एक मिशन भारत भेजा, यह मिशन 22 मार्च, 1942 को भारत पहुंचा।

  • युद्ध के बाद भारत को डोमिनियन स्टेटस का दर्जा प्रदान किया जाएगा
  • युद्ध के बाद एक संविधान निर्मात्री सभा का गठन किया जाएगा इसमें ब्रिटिश प्रांतों के चुने हुए प्रतिनिधि तथा देसी रियासतों के प्रतिनिधि शामिल होंगे।
  • जो प्रांत इससे सहमत नहीं होंगे वह इसे अस्वीकार कर सकते हैं या पूर्णतः स्वतंत्र रह सकते हैं।
  • क्रिप्स मिशन के प्रस्तावों को मुस्लिम लीग और कांग्रेस दोनों ने अस्वीकार कर दिया। मुस्लिम लीग को पाकिस्तान से कम कुछ भी मंजूर नहीं था, इसलिए मुस्लिम लीग ने इसे अस्वीकार कर दिया। कांग्रेस ने प्रस्ताव का विरोध इसलिए किया क्योंकि क्रिप्स मिशन के प्रस्तावों ने भारत विभाजन के दरवाजे को खोल दिया।

8.कैबिनेट मिशन 1946 (Cabinet Mission, 1946)

1946 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लीमेंट ऐटली ने भारत में सविधान निर्माण की संभावनाओं पर विचार करने हेतु एक तीन सदस्यीय मिशन भारत भेजा। इसमें लॉर्ड पैथिक लॉरेंस, सर स्टेफर्ड क्रिप्स और ए.वी.अलेक्जेंडर सम्मिलित थे। इस मिशन के अध्यक्ष लॉर्ड पैथिक लॉरेंस थे। यह मिशन 24 मार्च, 1946 को भारत पहुंचा। इसी मिशन की सिफारिशों के आधार पर भारत में सविधान सभा का गठन किया किया और इसी संविधान सभा द्वारा भारत में संविधान का निर्माण किया गया।

9.भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947(Indian Independent Act, 1947)

20 फरवरी, 1947 को ब्रिटिश प्रधानमन्त्री क्लिमेंट एटली की एक घोषणा आई इसमें उन्होंने घोषित किया कि 30 जून, 1948 तक भारत से ब्रिटिश शासन समाप्त हो जायेगा। इसके बाद मुस्लिम लीग द्वारा व्यापक पैमाने पर आंदोलन शुरू कर दिया गया और अपने लिए अलग राष्ट्र की मांग की गई ।समस्या के समाधान हेतु  लॉर्ड माउंटबेटन द्वारा 3 जून ,1947 को भारत विभाजन और सत्ता के हस्तांतरण की योजना पेश की गई । इस योजना को माउंटबेटन योजना, डिकी बर्ड प्लान, इस्मा प्लान, 3 जून की योजना, बाल्कन प्लान आदि नामों से जाना जाता है। इस योजना को मुस्लिम लीग और कांग्रेस दोनों द्वारा स्वीकार कर लिया गया।

  • 15 अगस्त, 1947 को भारत में ब्रिटिश शासन समाप्त हो गया और भारत को स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र घोषित कर दिया गया
  • भारत का विभाजन दो स्वतंत्र डोमिनियनो भारत और पाकिस्तान में कर दिया गया। इस अधिनियम द्वारा वायसराय के पद को समाप्त कर दिया गया और  भारत और पाकिस्तान हेतु पृथक गवर्नर जनरल के पद का सृजन किया गया जिसकी नियुक्ति उस राष्ट्र की सिफारिश पर ब्रिटिश ताज/ सम्राट को करना था, लेकिन इस पर ब्रिटिश सरकार का कोई नियंत्रण नहीं था। भारत में लॉर्ड माउंटबेटन को प्रथम गवर्नर जनरल के रूप में नियुक्त किया। इस प्रकार लॉर्ड माउंटबेटन स्वतंत्र भारत के प्रथम गवर्नर जनरल बने।उन्होंने जवाहरलाल नेहरू को भारत के पहले प्रधानमंत्री के रूप में शपथ दिलाई1946 में बनी संविधान सभा को स्वतंत्र भारत की  संसद के रूप में स्वीकार किया गया।
  • इस अधिनियम में यह व्यवस्था की गई कि देशी रियासतें भारत या पाकिस्तान किसी के साथ मिल सकती हैं या स्वतंत्र रह सकती हैं।
  • दोनों डोमिनियनो को अपनी इच्छा अनुसार किसी भी तरह का संविधान बनाने, किसी भी देश के संविधान के प्रावधानों को ग्रहण करने, किसी भी ब्रिटिश कानून को अस्वीकार करने का अधिकार प्रदान किया गया।
  • इस कानून ने भारत सचिव का पद समाप्त कर दिया और शाही उपाधि से ‘भारत का सम्राट’ शब्द समाप्त कर दिया
  • इस अधिनियम में व्यवस्था की गई कि नया संविधान बनने तक दोनों डोमिनियनो में शासन संचालन भारत शासन अधिनियम, 1935 के अनुसार चलाया जाएगा।

वाटिका,पाठ-2 पंच परमेश्वर

FAQ

Q. केंद्र में द्वैध शासन का सिद्धांत किस अधिनियम से लागू किया गया था?

Ans. 1935 के अधिनियम से

Q. कलकत्ता में सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना किस एक्ट के द्वारा हुई थी?

Ans. 1773 ई. के रेगुलेटिंग एक्ट द्वारा

Q. चीन के साथ व्यापार करने के कंपनी के एकाधिकार का उन्मूलन किसके द्वारा हुआ था?

Ans. 1833 के चार्टर एक्ट द्वारा

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