वाटिका (कक्षा-5) पाठ-4 सरिता

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वाटिका (कक्षा-5) पाठ-4 सरिता

यह लघु सरिता का बहता जल।

कितना शीतल, कितना निर्मल,

हिमगिरि के हिम से निकल-निकल,

यह विमल दूध-सा हिम का जल,

कर-कर निनाद कल-कल, छल-छल,

तन का चंचल मन का विह्वल ।

यह लघु सरिता का बहता जल।।

ऊँचे शिखरों से उतर-उतर,

गिर-गिर गिरि की चट्टानों पर,

कंकड़-कंकड़ पैदल चलकर,

दिन-भर, रजनी-भर, जीवन-भर,

धोता वसुधा का अंतस्तल ।

यह लघु सरिता का बहता जल ।।

हिम के पत्थर वे पिघल-पिघल,

बन गए धरा का वारि विमल,

सुख पाता जिससे पथिक विकल,

पी-पीकर अंजलि भर मृदु जल,

नित जल कर भी कितना शीतल ।

यह लघु सरिता का बहता जल ।।

कितना कोमल, कितना वत्सल,

रे जननी का वह अंतस्तल,

जिसका यह शीतल करुणा जल,

बहता रहता युग-युग अविरल,

गंगा, यमुना, सरयू निर्मल ।

यह लघु सरिता का बहता जल ।।

गोपाल सिंह ‘नेपाली’

गोपाल सिंह ‘नेपाली’ का संक्षिप्त परिचय

वाटिका (कक्षा-5) पाठ-4 सरिता

जन्म 11 अगस्त 1911 ई.
जन्म स्थान बिहार के पश्चिमी चंपारण के बेतिया में
मूल नामगोपाल बहादुर सिंह
प्रमुख रचनाएंउमंग, पंछी, नीलिमा, सावन
मृत्यु 17 अप्रैल 1963 ई.

नदी घटी की सभ्यता-हड़प्पा सभ्यता

शब्द अर्थ

शब्दअर्थ
विमलस्वच्छ, साफ
निनादध्वनि, आवाज
विह्वल व्याकुल
वसुधापृथ्वी
रजनीरात
वत्सलपुत्रवत् स्नेह करने वाला
अंतस्तलहृदय
अविरलनिरंतर, लगातार

संदर्भ, प्रसंग, भावार्थ

यह लघु सरिता………………………. का बहता जल।।

संदर्भ: यह पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘वाटिका’ के ‘सरिता’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता गोपाल सिंह ‘नेपाली’ है।

प्रसंग: इस कविता में कवि ने नदी की विशेषताओं का वर्णन किया है।

भावार्थ: कवि गोपाल सिंह ‘नेपाली’ कहते हैं की इस छोटी नदी का बहता जल अत्यंत ठंडा और स्वच्छ है। हिमालय के बर्फ से बहकर आने वाला यह जल दूध जैसा स्वच्छ है। कल कल और छल छल की ध्वनि के साथ बहते हुए मानो शरीर की चंचलता और मन की व्याकुलता को प्रदर्शित करता हो।ऐसा है इस छोटी नदी का प्रवाहित होता हुआ जल।

ऊंचे शिखरों ……………………………… बहता जल।।

भावार्थ: कवि गोपाल सिंह ‘नेपाली’ कहते हैं की यह जल पर्वत की ऊँची चोटियों से नीचे उतरकर पहाड़ की चट्टानों पर गिरता रहता है। दिन, रात और जीवनपर्यंत यह जल कंकड़-पत्थर में प्रवाहित होते हुए पृथ्वी का तल यानी हृदय धोता रहता है। ऐसा है इस छोटी नदी का बहता हुआ जल।

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हिम के पत्थर ………………………… का बहता जल।।

भावार्थ: कवि गोपाल सिंह ‘नेपाली’ कहते हैं की पर्वत के कठोर हिम से यह जल पिघल-पिघल कर पृथ्वी का सुन्दर जल बन गया। इस जल को थोड़ा सा पीकर रास्ता चलने वाला प्यासा पथिक (राहगीर) तृप्त (प्रसन्न) हो जाता है। छोटी नदी का बहता हुआ यह पानी नित्य ताप सहकर भी अत्यंत शीतल है।

कितना कोमल………………………. का बहता जल।।

भावार्थ: भारत माता का धरातल (हृदय) बहुत कोमल, जीवन रक्षक और पुत्रवत् स्नेह करनेवाला है। इसका यह शीतल जल तृप्त करनेवाला है। गंगा, यमुना, सरयू का यह स्वच्छ जल युग-युगांतर से निरंतर प्रवाहित होता चला आ रहा है। यह छोटी नदी का प्रवाहित जल है।

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1.बोध प्रश्न: उत्तर लिखिए

(क) सरिता का जल कहाँ से आता है?

(ख) सरिता का जल रात-दिन बहते हुए कौन-सा कार्य करता है?

(ग) पथिक सरिता के जल से किस प्रकार सुख पाता है?

(घ) कवि ने जननी के अंतस्तल को कोमल क्यों कहा है?

(ङ) सरिता के जल को ‘तन का चंचल’ क्यों कहा गया है?

प्रश्न 2. नीचे लिखी पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए-

(क) ‘तन का चंचल मन का विह्वल, यह लघु सरिता का बहता जल’

(ख) ‘दिन-भर, रजनी-भर, जीवन-भर, धोता वसुधा का अंतस्तल,’

(ग) ‘नित जलकर भी कितना शीतल’

(घ) ‘बहता रहता युग-युग अविरल’

प्रश्न 3. सोच-विचार : बताइए

क्या कारण हैं- नदियों का जल उद्गम स्थल पर शुद्ध होता है जो आगे चलकर प्रदूषित हो जाता है?

प्रश्न 4. भाषा के रंग-

(क) कल-कल, छल-छल समान ध्वनि के शब्द हैं जिनका एक साथ दोहरा प्रयोग हुआ है। इससे भाषा में सुंदरता बढ़ी है। कविता में आए इस प्रकार के अन्य शब्द लिखिए।

(ख) कविता की पंक्तियों के अंत में समान तुक वाले शब्द आए हैं जैसे, विकल निकल, जल-छल। इसी प्रकार समान तुक वाले शब्दों के जोड़े बनाइए।

(ग) कविता में सरिता के जल के लिए अनेक विशेषण शब्दों का प्रयोग हुआ है जैसे – शीतल, निर्मल आदि। ऐसे ही पाँच और विशेषण शब्दों को कविता से ढूँढ़कर लिखिए।

(घ) दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए-

प्रश्न 5. अनुमान और कल्पना

यदि नदियों का जल सूख जाए तो क्या होगा?

प्रश्न 6. तुम्हारी कलम से

‘जल ही जीवन है।’ इस कथन के संबंध में अपने विचारों को दस पंक्तियों में लिखिए।

प्रश्न 7. अब करने की बारी

(क) कविता का अभ्यास कर प्रभावपूर्ण ढंग से कक्षा में सुनाइए।

(ख) पहाड़ से निकलती हुई नदी का चित्र बनाइए।

(ग) अपने क्षेत्र में बहने वाली नदियों के नाम लिखिए।

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