कक्षा-5 | विषय-हिन्दी | वाटिका | पाठ-2 | पंच परमेश्वर
जुम्मन शेख और अलगू चौधरी में गाढ़ी मित्रता थी। साझे में खेती होती थी। कुछ लेन-देन में भी सांझा था। एक को दूसरे पर अटल विश्वास था। जुम्मन जब हज करने गए थे तब अपना घर अलगू को सौंप गए थे और अलगू जब कभी बाहर जाते तो जुम्मन के भरोसे अपना घर छोड़ देते थे। इस मित्रता का जन्म उसी समय हुआ था, जब दोनों बालक ही थे और जुम्मन के पिता जुमराती उन्हें शिक्षा प्रदान करते थे।
जुम्मन शेख की एक बूढ़ी खाला थीं। उनके पास थोड़ी-सी जायदाद थी; परंतु उनके निकट संबंधियों में कोई न था। जुम्मन ने लंबे-चौड़े वायदे करके वह जायदाद अपने नाम लिखवा ली थी। जब तक दानपत्र की रजिस्ट्री नहीं हुई, तब तक खाला की खूब खातिरदारी हुई। स्वादिष्ट पदार्थ खिलाए गए। रजिस्ट्री की मुहर लगते ही इस खातिरदारी पर भी मुहर लग गई। जुम्मन की पत्नी करीमन रोटियाॅं देने के साथ कड़वी बातें भी सुनाने लगी। जुम्मन शेख भी निठुर हो गए।
कुछ दिन खाला ने सब सुना और सहा, पर जब न सहा गया तब जुम्मन से शिकायत की। जुम्मन ने गृहस्वामिनी के प्रबंध में दखल देना उचित न समझा। कुछ दिन तक और यों ही रो- धोकर काम चलता रहा। अंत में एक दिन खाला ने कहा, “बेटा तुम्हारे साथ मेरा निबाह न होगा। तुम मुझे रुपये दे दिया करो, मैं अलग पका-खा लूँगी।” जुम्मन ने धृष्टता के साथ उत्तर दिया, “रुपये क्या यहाँ फलते हैं?” खाला बिगड़ गईं। उन्होंने पंचायत करने की धमकी दी। जुम्मन बोले, “हाँ, जरूर पंचायत कर लो। फैसला हो जाय। मुझे भी रात-दिन की यह खटपट पसंद नहीं।”
एक दिन संध्या के समय एक पेड़ के नीचे पंचायत बैठी। जुम्मन शेख ने पहले से ही सारा प्रबंध कर रखा था। पंच लोग बैठ गए तो बूढ़ी खाला ने उनसे विनती की, “पंचों, आज तीन साल हुए, मैंने अपनी सारी जायदाद अपने भान्जे जुम्मन के नाम लिख दी थी। जुम्मन ने रोटी-कपड़ा देना कबूल किया था। सालभर तो मैंने रो-धोकर इसके साथ काटा, पर अब सहा नहीं जाता। मुझे न पेट की रोटी मिलती है, न तन का कपड़ा। मैं बेसहारा हूँ। तुम लोग जो राह निकाल दो, उसी राह चलूँ। मैं पंचों की बात सिर-माथे चढ़ाऊँगी।”
सरपंच किसे बनाया जाय, इस प्रश्न पर जुम्मन शेख और खालाजान में कुछ कहा-सुनी हो गई। अंत में खाला बोलीं- “बेटा, पंच न किसी के दोस्त होते हैं, न किसी के दुश्मन । तुम्हारा किसी पर विश्वास न हो तो जाने दो, अलगू चौधरी को तो मानते हो? लो, मैं उन्हीं को सरपंच मानती हूँ।” जुम्मन शेख आनंद से फूल उठे, परंतु मन के भावों को छिपाकर बोले, “चलो, अलगू चौधरी ही सही।”
अलगू चौधरी सरपंच हुए। उन्होंने कहा, “शेख जुम्मन ! हम तुम पुराने दोस्त हैं, मगर इस समय तुम और बूढ़ी खाला दोनों हमारी निगाह में बराबर हो।” जुम्मन ने कहा, “खुदा गवाह है, आज तक मैंने खालाजान को कोई तकलीफ नहीं दी।”
अलगू चौधरी ने जुम्मन से जिरह शुरू की। जुम्मन चकित थे कि अलगू को हो क्या गया है? अभी तो यह मेरे साथ बैठे थे। अब इतने प्रश्न मुझसे क्यों पूछते हो ? जुम्मन यह सब सोच ही रहे थे कि अलगू ने फैसला सुनाया, “जुम्मन शेख ! पंचों ने इस मामले पर विचार किया। उन्हें यह उचित मालूम होता है कि खालाजान को माहवार खर्च दिया जाय। बस यही हमारा फैसला है। अगर खर्च देना मंजूर न हो तो रजिस्ट्री रद्द समझी जाय।”
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फैसला सुनते ही जुम्मन सन्नाटे में आ गए। अलगू के फैसले की सभी लोग प्रशंसा कर व रहे थे, पर इस फैसले ने अलगू और जुम्मन की दोस्ती की जड़ हिला दी। जुम्मन को यह फैसला आठों पहर खटकने लगा। वे इस ताक में थे कि किसी तरह अलगू से बदला लेने का अवसर मिले।
ऐसा अवसर जल्द ही जुम्मन के हाथ आया। अलगू चौधरी बटेसर से बैलों की एक बहुत अच्छी जोड़ी मोल लाए थे। दैवयोग से जुम्मन की पंचायत के एक महीने बाद इस जोड़ी का एक बैल मर गया। अब अकेला बैल किस काम का? गाँव में समझू साहु थे। उन्होंने एक महीने में दाम चुकाने का वादा करके चौधरी से बैल खरीद लिया।
समझू साहु ने नया बैल पाया तो लगे रगेदने। न चारे की फिक्र, न पानी की। वह दिन में तीन-तीन, चार-चार खेपें करने लगे। एक दिन साहु जी ने दूना बोझ लाद दिया। बैल ने जोर लगाया, पर वह आधे रास्ते में ही धरती पर गिर पड़ा। ऐसा गिरा कि फिर न उठा।
इस घटना को कई महीने बीत गए। अलगू जब बैल का दाम माँगते, तब साहु-सहुवाइन दोनों ही झल्ला उठते। कहते मुर्दा बैल दिया था, उस पर दाम माँगने चले हैं ! इसी तरह कई बार झगड़े हुए पर साहु जी ने बैल का दाम न चुकाया। लोगों ने साहु जी को समझाया, “भाई पंचायत कर लो। जो कुछ तय हो जाय उसे स्वीकार कर लो।” साहु जी राजी हो गए तथा अलगू ने भी हामी भर ली।
उसी वृक्ष के नीचे पंचायत शुरू हुई। रामधन ने कहा, “चौधरी, बोलो किसको पंच मानते हो?” अलगू ने कहा, “समझू साहु ही चुन लें।”
समझू खड़े हुए और कड़क कर बोले, “मेरी ओर से जुम्मन शेख ।”
जुम्मन का नाम सुनते ही अलगू का कलेजा धक-धक करने लगा, फिर भी उन्होंने कहा, “ठीक है, मुझे स्वीकार है।”
सरपंच का आसन ग्रहण करते हुए जुम्मन में अपनी जिम्मेदारी का भाव पैदा हुआ। उन्होंने सोचा- मैं इस समय न्याय के सर्वोच्च आसन पर बैठा हूँ। सत्य से जौ-भर भी टलना मेरे लिए उचित नहीं है।
पंचों ने दोनों से सवाल-जवाब शुरू किया। बहुत देर तक दोनों अपने-अपने पक्ष का समर्थन करते रहे। अंत में जुम्मन ने फैसला सुनाया, “अलगू चौधरी और समझू साहु ! पंचों ने तुम्हारे मामले पर अच्छी तरह विचार किया। समझू के लिए उचित है कि बैल का पूरा दाम दें। जिस समय उन्होंने बैल लिया था, उस समय उसे कोई बीमारी न थी। बैल की मृत्यु केवल इस कारण हुई कि उससे कठिन परिश्रम लिया गया और उसके दाने-चारे का प्रबंध नहीं किया गया।”
अलगू चौधरी फूले न समाए, उठ खड़े हुए और जोर से बोले, “पंच परमेश्वर की जय’। साथ ही सभी लोगों ने दोहराया, “पंच परमेश्वर की जय।”
थोड़ी देर बाद जुम्मन अलगू के पास आए और उनके गले से लिपट गए। अलगू रोने लगे। इस पानी से दोनों के दिलों का मैल धुल गया। मित्रता की मुरझाई हुई लता फिर हरी हो गई।
–प्रेमचंद
मुंशी प्रेमचंद का संक्षिप्त परिचय
वास्तविक नाम | धनपत राय श्रीवास्तव |
जन्म | 31 जुलाई 1880 ई० |
मृत्यु | 08 अक्टूबर 1936 ई० |
जन्म स्थान | लमही वाराणसी (उत्तर-प्रदेश) |
पिता का नाम | मुंशी अजायबराय |
माता का नाम | आनन्दी देवी |
उपन्यास | गोदान, गबन आदि। |
कहानियाँ | ईदगाह, पूस की रात, दो बैलों की कथा, कफन आदि |
शब्द अर्थ
शब्द | अर्थ |
स्वादिष्ट | जायकेदार |
गृहस्वामिनी | घर की मालकिन |
दैवयोग | ईश्वर की इच्छा |
परिश्रम | मेहनत |
धृष्टता | ढिठाई |
कबूल | स्वीकार |
जिरह | बहस |
सर्वोच्च | सबसे ऊंचा |
1.बोध प्रश्न : उत्तर लिखिए
प्रश्न (क) जायदाद की रजिस्ट्री होते ही जुम्मन का व्यवहार बदल गया। इससे जुम्मन के स्वभाव के बारे में क्या पता चलता है?
उत्तर (क) जायदाद की रजिस्ट्री होते ही जुम्मन का व्यवहार बदल गया, इससे जुम्मन के स्वार्थी और मतलबी होने का पता चलता है।
प्रश्न (ख) “मैं अलग पका-खा लूँगी” खाला ने ऐसा क्यों कहा?
उत्तर (ख) जुम्मन की पत्नी करीमन और जुम्मन के निष्ठुर व्यवहार से तंग होकर खाला ने कहा, “मैं अलग पका-खा लूँगी”
प्रश्न (ग) जुम्मन ने खाला को रोटी-कपड़ा देना क्यों कबूल किया था?
उत्तर (ग) खाला ने जुम्मन के नाम अपनी जायदाद की रजिस्ट्री की थी इसीलिए जुम्मन ने खाला को रोटी-कपड़ा देना कबूल किया था।
प्रश्न (घ) फैसला सुनते ही जुम्मन सन्नाटे में क्यों आ गए?
उत्तर (घ) सरपंच अलगू चौधरी जुम्मन का मित्र था; जब अलगू चौधरी ने खाला के पक्ष में और जुम्मन के खिलाफ फैसला सुनाया तो जुम्मन सन्नाटे में आ गए।
प्रश्न (ङ) सरपंच का आसन ग्रहण करते हुए जुम्मन में कौन-सा भाव पैदा हुआ?
उत्तर (ङ) सरपंच का आसन ग्रहण करते हुए जुम्मन में जिम्मेदारी का भाव पैदा हुआ। उन्होंने सोचा- मैं इस समय न्याय के सर्वोच्च आसन पर बैठा हूँ। सत्य से जौ-भर भी टलना मेरे लिए उचित नहीं है।
2. सही विकल्प पर ✓ का निशान लगाइए-
(क) जुम्मन का मित्र होते हुए भी पंचायत में अलगू ने उनके खिलाफ फैसला दिया, क्योंकि –
- अलगू सच्चा मित्र नहीं था। ( )
- जुम्मन के घमंडी स्वभाव से अलगू नाराज था। ( )
- सरपंच का स्थान ग्रहण करने वाला व्यक्ति निष्पक्ष होकर न्याय करता है। ( ✓ )
(ख) जुम्मन शेख ने समझू साहु के विरुद्ध फैसला दिया की बैल का पूरा दाम अलगू चौधरी को दें, क्योंकि-
- जुम्मन शेख ने सरपंच बनकर समझू साहू से बदला लिया। ( )
- जुम्मन शेख ने अपने मित्र अलगू चौधरी का पक्ष लिया। ( )
- बैल की मृत्यु केवल इस कारण हुई की उससे कठिन परिश्रम लिया गया और उसके दाने-चारे का प्रबंध नहीं किया गया। ( ✓ )
3. कहानी से संबंधित वाक्य गलत क्रम में लिखे गए हैं, उन्हें सही क्रम में लिखिए
- जुम्मन ने लंबे-चौड़े वायदे करके वह जायदाद अपने नाम लिखवा ली थी।
- थोड़ी देर बाद जुम्मन अलगू के पास आए और उनके गले से लिपट गए।
- जुम्मन शेख की एक बूढ़ी खाला थीं।
- सरपंच का आसन ग्रहण करते हुए जुम्मन में अपनी जिम्मेदारी का भाव पैदा हुआ।
- उनके पास थोड़ी जायदाद थी, परंतु उनके निकट संबंधियों में कोई न था।
- एक दिन संध्या के समय एक पेड़ के नीचे पंचायत बैठी।
- अलगू चौधरी ने जुम्मन से जिरह शुरू की।
उत्तर (3) कहानी से संबंधित दिए गए वाक्यों का सही क्रम निम्नलिखित है:
- जुम्मन शेख की एक बूढ़ी खाला थीं।
- उनके पास थोड़ी जायदाद थी, परंतु उनके निकट संबंधियों में कोई न था।
- जुम्मन ने लंबे-चौड़े वायदे करके वह जायदाद अपने नाम लिखवा ली थी।
- एक दिन संध्या के समय एक पेड़ के नीचे पंचायत बैठी।
- अलगू चौधरी ने जुम्मन से जिरह शुरू की।
- सरपंच का आसन ग्रहण करते हुए जुम्मन में अपनी जिम्मेदारी का भाव पैदा हुआ।
- थोड़ी देर बाद जुम्मन अलगू के पास आए और उनके गले से लिपट गए।
4. निम्नलिखित कथनों को पढ़िए और उनके सामने खाली जगह में ‘किसने-किससे कहा’ लिखिए-
कथन | किसने-किससे कहा |
बेटा तुम्हारे साथ मेरा निबाह न होगा। तुम मुझे रुपए दे दिया करो, मैं अलग पका-खा लूंगी। | खाला ने जुम्मन से |
रुपए क्या यहां फलते हैं? | जुम्मन ने खाला से |
शेख जुम्मन! हम पुराने दोस्त हैं, मगर इस समय तुम और बूढ़ी खाला दोनों हमारी निगाह में बराबर हो। | अलगू चौधरी ने जुम्मन से |
भाई पंचायत कर लो। जो कुछ तय हो जाए उसे स्वीकार कर लो। | अलगू चौधरी ने समझू साहू से |
समझू के लिए उचित है की बैल का पूरा दाम दें। | जुम्मन ने अलगू चौधरी और समझू साहू से |
पंच न किसी के दोस्त होते हैं, न किसी के दुश्मन। | खाला ने जुम्मन से |
5. नीचे लिखी पंक्तियों का आशय अपने शब्दों में लिखिए –
रजिस्ट्री की मुहर लगते ही खातिरदारी पर भी मुहर लग गई।
आशय: जैसे ही बूढ़ी खाला ने अपनी जायदाद जुम्मन के नाम की वैसे ही उनका आदर सत्कार भी बंद हो गया।
कुछ दिनों तक और यों ही रो-धोकर काम चलता रहा।
आशय: खाला द्वारा जुम्मन के नाम रजिस्ट्री करने के बाद जुम्मन की पत्नी करीमन और जुम्मन का व्यवहार खाला के प्रति निष्ठुर हो गया, विपरीत परिस्थितियों में भी खाला कुछ दिन तक सब दु:ख सहती रही।
जुम्मन ने धृष्टता के साथ उत्तर दिया, “रुपये क्या यहाँ फलते हैं?”
आशय: परेशान होकर जब खाला ने जुम्मन से कहा की अब मैं तुम लोगों के साथ नहीं रह सकती और अलग रहने और खाने के पैसे के पैसे मांगे तो जुम्मन ने पैसे देने से मना कर दिया।
जुम्मन को यह फैसला आठों पहर खटकने लगा।
आशय: जब पंचायत में सरपंच अलगू चौधरी ने जुम्मन के खिलाफ फैसला सुनाया तो यह बात जुम्मन को हमेशा परेशान करने लगी।
‘मैं इस समय न्याय के सर्वोच्च आसन पर बैठा हूँ। सत्य से जौ-भर भी टलना मेरे लिए उचित नहीं है।
आशय: जब अलगू चौधरी और समझू साहू का मामला पंचायत में गया और जुम्मन को सरपंच चुना गया तो जुम्मन को सरपंच के कर्तव्यों का बोध हुआ, उसे बिना किसी द्वेष भाव के निष्पक्ष होकर सत्य का साथ देना होगा।
6. भाषा के रंग
(क) मुहावरों का सही अर्थ से मिलान करते हुए अपने वाक्यों में प्रयोग करिए-
मुहावरा | अर्थ |
मुहर लग जाना | चुप रह जाना |
सिर माथे चढ़ाना | मन साफ हो जाना |
सन्नाटे में आ जाना | पक्का हो जाना |
कलेजा धक-धक करना | खुशी से स्वीकार करना |
दिल का मैल धुल जाना | अधिक घबरा जाना |
उत्तर 6(क)
मुहावरा | अर्थ | वाक्य प्रयोग |
मुहर लग जाना | पक्का हो जाना | नए विद्यालय में प्रवेश के फैसले पर पिताजी ने अपनी मुहर लगा दी है। |
सिर माथे चढ़ाना | खुशी से स्वीकार करना | न्यायाधीश के फैसले को दोनों पक्षों ने सिर माथे चढ़ाया। |
सन्नाटे में आ जाना | चुप रह जाना | अंग्रेजी में कम नंबर पाने पर पिता की डांट से गीता सन्नाटे में आ गई। |
कलेजा धक-धक करना | अधिक घबरा जाना | चिड़ियाघर में शेर की दहाड़ से रमेश का कलेजा धक-धक करने लगा। |
दिल का मैल धुल जाना | मन साफ हो जाना | रमेश और सुरेश के बीच किसी बात को लेकर झगड़ा हो गया था लेकिन जब रमेश ने सुरेश को गले को लगाया तो दोनों के दिल का मैल धुल गया। |
(ख) निम्नलिखित तद्भव शब्दों के तत्सम रूप लिखिए-
निबाह, निठूर, पहर, घर, पूरा, भगत
तद्भव शब्द | तत्सम शब्द |
निबाह | निर्वाह |
निठूर | निष्ठुर |
पहर | प्रहर |
घर | गृह |
पूरा | पूर्ण |
भगत | भक्त |
7. तुम्हारी कलम से
‘सरपंच कैसा होना चाहिए’ इस विषय पर अपने विचार लिखिए
उत्तर (7) सरपंच को अपने कर्तव्यों का निर्वहन ईमानदारी पूर्वक करनेवाला होना चाहिए। सरपंच को बिना किसी भेदभाव और पूर्वाग्रह से ग्रसित हुए बिना निर्णय लेने में सक्षम होना चाहिए। सरपंच को हमेशा सत्य और न्याय का साथ देना चाहिए।
8. अब करने की बारी
(क) इस कहानी को अपने शब्दों में सुनाइए।
(ख) अपने आस-पास घटी किसी घटना/विवाद के बाद पांचों के फैसले के बारे में चर्चा कजिए, जिससे विवाद का निपटारा हुआ हो।
(ग) कहानी पर अपनी कक्षा में अपनी अभिनय कीजिए।
9. मेरे दो प्रश्न: पाठ के आधार पर दो सवाल बनाइए
उत्तर (9)
(1) खाला ने अलगू चौधरी को ही पांच क्यों चुना?
(2) जुम्मन अलगू चौधरी द्वारा जिरह किए जाने पर क्यों चकित थे?
10. इस कहानी से-
(क) मैंने सीखा
उत्तर (क) बिना किसी द्वेष के अपने पद की जिम्मेदारियां का निर्वहन पूरी ईमानदारी और सत्य निष्ठा के साथ करना चाहिए।
(ख) मैं करूंगी/करूंगा-
उत्तर (ख) जब कभी भी मुझे कोई निर्णय करने की जिम्मेदारी मिलेगी तो मैं बिना किसी भेद भाव के अपने पूरे विवेक का इस्तेमाल करते हुए पूरी ईमानदारी से निर्णय लूंगा भले ही इसमें मेरे पसंदीदा व्यक्ति को हानि ही क्यों न हो।
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