वाटिका,पाठ-2 पंच परमेश्वर

जुम्मन शेख और अलगू चौधरी में गाढ़ी मित्रता थी। साझे में खेती होती थी। कुछ लेन-देन में भी सांझा था। एक को दूसरे पर अटल विश्वास था। जुम्मन जब हज करने गए थे तब अपना घर अलगू को सौंप गए थे और अलगू जब कभी बाहर जाते तो जुम्मन के भरोसे अपना घर छोड़ देते थे। इस मित्रता का जन्म उसी समय हुआ था, जब दोनों बालक ही थे और जुम्मन के पिता जुमराती उन्हें शिक्षा प्रदान करते थे।

वाटिका

जुम्मन शेख की एक बूढ़ी खाला थीं। उनके पास थोड़ी-सी जायदाद थी; परंतु उनके निकट संबंधियों में कोई न था। जुम्मन ने लंबे-चौड़े वायदे करके वह जायदाद अपने नाम लिखवा ली थी। जब तक दानपत्र की रजिस्ट्री नहीं हुई, तब तक खाला की खूब खातिरदारी हुई। स्वादिष्ट पदार्थ खिलाए गए। रजिस्ट्री की मुहर लगते ही इस खातिरदारी पर भी मुहर लग गई। जुम्मन की पत्नी करीमन रोटियाॅं देने के साथ कड़वी बातें भी सुनाने लगी। जुम्मन शेख भी निठुर हो गए।

कुछ दिन खाला ने सब सुना और सहा, पर जब न सहा गया तब जुम्मन से शिकायत की। जुम्मन ने गृहस्वामिनी के प्रबंध में दखल देना उचित न समझा। कुछ दिन तक और यों ही रो- धोकर काम चलता रहा। अंत में एक दिन खाला ने कहा, “बेटा तुम्हारे साथ मेरा निबाह न होगा। तुम मुझे रुपये दे दिया करो, मैं अलग पका-खा लूँगी।” जुम्मन ने धृष्टता के साथ उत्तर दिया, “रुपये क्या यहाँ फलते हैं?” खाला बिगड़ गईं। उन्होंने पंचायत करने की धमकी दी। जुम्मन बोले, “हाँ, जरूर पंचायत कर लो। फैसला हो जाय। मुझे भी रात-दिन की यह खटपट पसंद नहीं।”

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एक दिन संध्या के समय एक पेड़ के नीचे पंचायत बैठी। जुम्मन शेख ने पहले से ही सारा प्रबंध कर रखा था। पंच लोग बैठ गए तो बूढ़ी खाला ने उनसे विनती की, “पंचों, आज तीन साल हुए, मैंने अपनी सारी जायदाद अपने भान्जे जुम्मन के नाम लिख दी थी। जुम्मन ने रोटी-कपड़ा देना कबूल किया था। सालभर तो मैंने रो-धोकर इसके साथ काटा, पर अब सहा नहीं जाता। मुझे न पेट की रोटी मिलती है, न तन का कपड़ा। मैं बेसहारा हूँ। तुम लोग जो राह निकाल दो, उसी राह चलूँ। मैं पंचों की बात सिर-माथे चढ़ाऊँगी।”

सरपंच किसे बनाया जाय, इस प्रश्न पर जुम्मन शेख और खालाजान में कुछ कहा-सुनी हो गई। अंत में खाला बोलीं- “बेटा, पंच न किसी के दोस्त होते हैं, न किसी के दुश्मन । तुम्हारा किसी पर विश्वास न हो तो जाने दो, अलगू चौधरी को तो मानते हो? लो, मैं उन्हीं को सरपंच मानती हूँ।” जुम्मन शेख आनंद से फूल उठे, परंतु मन के भावों को छिपाकर बोले, “चलो, अलगू चौधरी ही सही।”

अलगू चौधरी सरपंच हुए। उन्होंने कहा, “शेख जुम्मन ! हम तुम पुराने दोस्त हैं, मगर इस समय तुम और बूढ़ी खाला दोनों हमारी निगाह में बराबर हो।” जुम्मन ने कहा, “खुदा गवाह है, आज तक मैंने खालाजान को कोई तकलीफ नहीं दी।”

अलगू चौधरी ने जुम्मन से जिरह शुरू की। जुम्मन चकित थे कि अलगू को हो क्या गया है? अभी तो यह मेरे साथ बैठे थे। अब इतने प्रश्न मुझसे क्यों पूछते हो ? जुम्मन यह सब सोच ही रहे थे कि अलगू ने फैसला सुनाया, “जुम्मन शेख ! पंचों ने इस मामले पर विचार किया। उन्हें यह उचित मालूम होता है कि खालाजान को माहवार खर्च दिया जाय। बस यही हमारा फैसला है। अगर खर्च देना मंजूर न हो तो रजिस्ट्री रद्द समझी जाय।”

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फैसला सुनते ही जुम्मन सन्नाटे में आ गए। अलगू के फैसले की सभी लोग प्रशंसा कर व रहे थे, पर इस फैसले ने अलगू और जुम्मन की दोस्ती की जड़ हिला दी। जुम्मन को यह फैसला आठों पहर खटकने लगा। वे इस ताक में थे कि किसी तरह अलगू से बदला लेने का अवसर मिले।

ऐसा अवसर जल्द ही जुम्मन के हाथ आया। अलगू चौधरी बटेसर से बैलों की एक बहुत अच्छी जोड़ी मोल लाए थे। दैवयोग से जुम्मन की पंचायत के एक महीने बाद इस जोड़ी का एक बैल मर गया। अब अकेला बैल किस काम का? गाँव में समझू साहु थे। उन्होंने एक महीने में दाम चुकाने का वादा करके चौधरी से बैल खरीद लिया।

समझू साहु ने नया बैल पाया तो लगे रगेदने। न चारे की फिक्र, न पानी की। वह दिन में तीन-तीन, चार-चार खेपें करने लगे। एक दिन साहु जी ने दूना बोझ लाद दिया। बैल ने जोर लगाया, पर वह आधे रास्ते में ही धरती पर गिर पड़ा। ऐसा गिरा कि फिर न उठा।

इस घटना को कई महीने बीत गए। अलगू जब बैल का दाम माँगते, तब साहु-सहुवाइन दोनों ही झल्ला उठते। कहते मुर्दा बैल दिया था, उस पर दाम माँगने चले हैं ! इसी तरह कई बार झगड़े हुए पर साहु जी ने बैल का दाम न चुकाया। लोगों ने साहु जी को समझाया, “भाई पंचायत कर लो। जो कुछ तय हो जाय उसे स्वीकार कर लो।” साहु जी राजी हो गए तथा अलगू ने भी हामी भर ली।

उसी वृक्ष के नीचे पंचायत शुरू हुई। रामधन ने कहा, “चौधरी, बोलो किसको पंच मानते हो?” अलगू ने कहा, “समझू साहु ही चुन लें।”

समझू खड़े हुए और कड़क कर बोले, “मेरी ओर से जुम्मन शेख ।”

जुम्मन का नाम सुनते ही अलगू का कलेजा धक-धक करने लगा, फिर भी उन्होंने कहा, “ठीक है, मुझे स्वीकार है।”

सरपंच का आसन ग्रहण करते हुए जुम्मन में अपनी जिम्मेदारी का भाव पैदा हुआ। उन्होंने सोचा- मैं इस समय न्याय के सर्वोच्च आसन पर बैठा हूँ। सत्य से जौ-भर भी टलना मेरे लिए उचित नहीं है।

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पंचों ने दोनों से सवाल-जवाब शुरू किया। बहुत देर तक दोनों अपने-अपने पक्ष का समर्थन करते रहे। अंत में जुम्मन ने फैसला सुनाया, “अलगू चौधरी और समझू साहु ! पंचों ने तुम्हारे मामले पर अच्छी तरह विचार किया। समझू के लिए उचित है कि बैल का पूरा दाम दें। जिस समय उन्होंने बैल लिया था, उस समय उसे कोई बीमारी न थी। बैल की मृत्यु केवल इस कारण हुई कि उससे कठिन परिश्रम लिया गया और उसके दाने-चारे का प्रबंध नहीं किया गया।”

अलगू चौधरी फूले न समाए, उठ खड़े हुए और जोर से बोले, “पंच परमेश्वर की जय’। साथ ही सभी लोगों ने दोहराया, “पंच परमेश्वर की जय।”

थोड़ी देर बाद जुम्मन अलगू के पास आए और उनके गले से लिपट गए। अलगू रोने लगे। इस पानी से दोनों के दिलों का मैल धुल गया। मित्रता की मुरझाई हुई लता फिर हरी हो गई।

प्रेमचंद

वास्तविक नामधनपत राय श्रीवास्तव
जन्म31 जुलाई 1880 ई०
मृत्यु08 अक्टूबर 1936 ई०
जन्म स्थान लमही वाराणसी (उत्तर-प्रदेश)
पिता का नाममुंशी अजायबराय
माता का नामआनन्दी देवी
उपन्यासगोदान, गबन आदि।
कहानियाँईदगाह, पूस की रात, दो बैलों की कथा, कफन आदि
मुंशी प्रेमचंद का संक्षिप्त परिचय
शब्द अर्थ
स्वादिष्टजायकेदार
गृहस्वामिनीघर की मालकिन
दैवयोगईश्वर की इच्छा
परिश्रममेहनत
धृष्टता ढिठाई
कबूलस्वीकार
जिरहबहस
सर्वोच्चसबसे ऊंचा

1.बोध प्रश्न : उत्तर लिखिए

प्रश्न (क) जायदाद की रजिस्ट्री होते ही जुम्मन का व्यवहार बदल गया। इससे जुम्मन के स्वभाव के बारे में क्या पता चलता है?

प्रश्न (ख) “मैं अलग पका-खा लूँगी” खाला ने ऐसा क्यों कहा?

प्रश्न (ग) जुम्मन ने खाला को रोटी-कपड़ा देना क्यों कबूल किया था?

प्रश्न (घ) फैसला सुनते ही जुम्मन सन्नाटे में क्यों आ गए?

प्रश्न (ङ) सरपंच का आसन ग्रहण करते हुए जुम्मन में कौन-सा भाव पैदा हुआ?

2. सही विकल्प पर ✓ का निशान लगाइए-

(क) जुम्मन का मित्र होते हुए भी पंचायत में अलगू ने उनके खिलाफ फैसला दिया, क्योंकि –

(ख) जुम्मन शेख ने समझू साहु के विरुद्ध फैसला दिया की बैल का पूरा दाम अलगू चौधरी को दें, क्योंकि-

3. कहानी से संबंधित वाक्य गलत क्रम में लिखे गए हैं, उन्हें सही क्रम में लिखिए

  • जुम्मन ने लंबे-चौड़े वायदे करके वह जायदाद अपने नाम लिखवा ली थी।
  • थोड़ी देर बाद जुम्मन अलगू के पास आए और उनके गले से लिपट गए।
  • जुम्मन शेख की एक बूढ़ी खाला थीं।
  • सरपंच का आसन ग्रहण करते हुए जुम्मन में अपनी जिम्मेदारी का भाव पैदा हुआ।
  • उनके पास थोड़ी जायदाद थी, परंतु उनके निकट संबंधियों में कोई न था।
  • एक दिन संध्या के समय एक पेड़ के नीचे पंचायत बैठी।
  • अलगू चौधरी ने जुम्मन से जिरह शुरू की।

4. निम्नलिखित कथनों को पढ़िए और उनके सामने खाली जगह में ‘किसने-किससे कहा’ लिखिए-

5. नीचे लिखी पंक्तियों का आशय अपने शब्दों में लिखिए –

रजिस्ट्री की मुहर लगते ही खातिरदारी पर भी मुहर लग गई।

कुछ दिनों तक और यों ही रो-धोकर काम चलता रहा।

जुम्मन ने धृष्टता के साथ उत्तर दिया, “रुपये क्या यहाँ फलते हैं?”

जुम्मन को यह फैसला आठों पहर खटकने लगा।

‘मैं इस समय न्याय के सर्वोच्च आसन पर बैठा हूँ। सत्य से जौ-भर भी टलना मेरे लिए उचित नहीं है।

6. भाषा के रंग

(क) मुहावरों का सही अर्थ से मिलान करते हुए अपने वाक्यों में प्रयोग करिए-

मुहावराअर्थ
मुहर लग जानाचुप रह जाना
सिर माथे चढ़ाना मन साफ हो जाना
सन्नाटे में आ जानापक्का हो जाना
कलेजा धक-धक करनाखुशी से स्वीकार करना
दिल का मैल धुल जानाअधिक घबरा जाना

उत्तर 6(क)

(ख) निम्नलिखित तद्भव शब्दों के तत्सम रूप लिखिए-

निबाह, निठूर, पहर, घर, पूरा, भगत

7. तुम्हारी कलम से

‘सरपंच कैसा होना चाहिए’ इस विषय पर अपने विचार लिखिए

8. अब करने की बारी

(क) इस कहानी को अपने शब्दों में सुनाइए।

(ख) अपने आस-पास घटी किसी घटना/विवाद के बाद पांचों के फैसले के बारे में चर्चा कजिए, जिससे विवाद का निपटारा हुआ हो।

(ग) कहानी पर अपनी कक्षा में अपनी अभिनय कीजिए।

9. मेरे दो प्रश्न: पाठ के आधार पर दो सवाल बनाइए

10. इस कहानी से-

(क) ‌मैंने सीखा

(ख) मैं करूंगी/करूंगा-

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